श्रम का महत्व
भूमिका-परिश्रम जीवन का आधार है। 'श्रमेव जयते' - परिश्रम की सदा विजय होती है। परिश्रम से ही भविष्य उज्ज्वल बनता है। परिश्रम देवता है और परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। ऋग्वेद में कहा गया है कि परिश्रम के बिना देवों की मित्रता भी नहीं मिलती। अतः जीवन में परिश्रम के बिना उन्नति नहीं हो सकती। परिश्रम के द्वारा हम जीवन की बड़ी से बड़ी आकांक्षा को पूर्ण कर सकते हैं। कार्य मनोरथ से नहीं, उद्यम से सिद्ध होते हैं। क्या कभी सुप्त सिंह के मुँह में मृग स्वतः ही आ जाता है। अतः कार्य सिद्धि के लिए परिश्रम अत्यन्त आवश्यक है। संसार कर्मक्षेत्र है। कर्म करना ही सभी का धर्म है। बिना परिश्रम के सुख नहीं मिलता है। जो व्यक्ति परिश्रमी होता है वह हमेशा परिश्रम करता रहता है। असफलता उसके बढ़ते कदमों को रोक नहीं पाती और उसे रास्ता देना ही पड़ता है।
लक्ष्य निर्धारण में सहायक- हर व्यक्ति का जीवन में कोई न कोई मुख्य लक्ष्य होता है। अपनी इच्छाओं को परख कर वह देख लेता है कि उसकी प्रबल इच्छा क्या है? साहित्य सेवा, व्यापार, राजनीति विज्ञान और कला-कौशल आदि में से मनुष्य अपना जीवन लक्ष्य बना लेता है। फिर उस लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देता है। दृढ़ संकल्प और निरंतर परिश्रम के द्वारा व्यक्ति नित्य प्रति अपने लक्ष्य के निकट पहुंचता जाता है। अमेरिका, रूस, जापान की हर प्रकार की उन्नति की नींव वहाँ के लोगों द्वारा किए गए परिश्रम पर आध रित है।
प्ररेणा बिन्दु - संसार में अनेक सफल व्यक्ति हैं जो मनुष्य को निरंतर परिश्रम की प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं। हम चाहे कितने ही शक्ति सम्पन्न क्यों न हो, यदि परिश्रम नहीं करना चाहते तो मुख्य लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकते। प्रकृति का सम्पूर्ण रूप हमें निरन्तर परिश्रम की प्रेरणा देता रहता है। पशु-पक्षी, जीव-जन्तु सभी निरन्तर परिश्रम करते रहते हैं। रंगीन तितलियाँ धूप में उड़ती रहती हैं। मधुमक्खियाँ मधु इकट्ठा करने में अत्यधिक परिश्रम करती हैं। कवि पंत ने ठीक ही कहा है :-
"दिन भर में वह मीलों चलती
अथक कार्य से कभी न हटती।"
यदि चींटी के समान हम भी मेहनत करने लग जाएं तो हम जीवन को महान बनाने में सफल हो सकते हैं। कर्म करना मनुष्य का धर्म है। हर सफल नेता, साहित्यकार एवं वैज्ञानिक को अपने कार्यक्षेत्र में अधिकाधि क परिश्रम करना पड़ता है। आलस्य जीवन के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। नदी की लहरें मनुष्य को निरन्तर आगे बढ़ने की प्ररेणा देती हैं। सूर्य, चन्द्रमा, तारे, सभी क्रियाशील रहते हैं। बड़ी-बड़ी खेज तथा बड़े-बड़े निर्माण कार्य परिश्रम की देन हैं। लक्ष्य तक तो परिश्रम ही पहुँचाता है।
बाबर, शेरशाह, नेपोलियन आरम्भ में सामान्य व्यक्ति थे। परन्तु उनके श्रम ने उन्हें इतिहास में अमर स्थान प्रदान किया है। हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का नारा था 'आराम हराम हे'। आज हम कृषि, शिक्षा, उद्योग में उन्नत हैं। यह सब श्रम का ही फल है। जो व्यक्ति परिश्रम करता है, वह लक्ष्य को प्राप्त होकर यश प्राप्त करता है। परिश्रम ही वह साधन है जिस से व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करता है व परिवार व देश की उन्नति में सहायक होता है। परिश्रमी व्यक्ति परिश्रम को ही भगवान, पूजा-पाठ और धर्मस्थल के रूप में देखता है। देश का किसान दिन भर खेतों में परिश्रम करता है और सांयकाल अपने घर आकर आनंद की नींद सोता है। ठीक उसी प्रकार जैसे विद्यार्थी विद्या अध्ययन करता है और सायंकाल के समय खेलता है। परिश्रम करने से व्यक्ति में संतोष की प्रवृत्ति का संचार होता है। उसका शरीर स्वस्थ रहता है। परिश्रम करने से नींद अच्छी आती है। भोजन ठीक प्रकार से पच जाता है। परिश्रम हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है। शारीरिक परिश्रम करने से बौद्धिक विकास होता है। किसी भी प्रकार की मुसीबत में परिश्रमी व्यक्ति धैर्य नहीं छोड़ना। मानसिक श्रम भी मनुष्य के लिए जरूरी है। यही कारण था कि प्राचीन काल के ऋषि-मुनि चिंतन में लीन रहते थे। मनुष्य के लिए मानसिक परिश्रम आवश्यक बताया गया है।
विद्वानों ने परिश्रम को दो भागों में बाँटा है (1) उत्पादक (2) अनुत्पादक श्रम किसान खेती-बाड़ी में परिश्रम करता है। एक श्रमिक कारखाने में परिश्रम करता है तो उत्पादन होता है, इसे उत्पादक श्रम कहते हैं, जबकि एक पहलवान व्यायाम आदि के रूप में श्रम करता है, इससे उत्पादन तो नहीं होता परन्तु लाभ इससे भी होता है। इस प्रकार के श्रम से मनोरंजन के साथ-साथ मानसिक बल बढ़ता है। जो लोग मानसिक श्रम करते हैं, उनके लिए शारीरिक श्रम आवश्यक है महात्मा गांधी ने भी उत्पादक श्रम को स्वीकार किया था। जिस देश की जनता परिश्रम करती है, वह देश उन्नति के शिखर पर पहुँच जाता है। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य अपने भाग्य का निर्माण कर सकता है। परमात्मा भी उन्हीं लोगों की सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं।
जो व्यक्ति आलस्य पूर्ण जीवन व्यतीत करता है वह विकास नहीं कर सकता। हमारा देश सदियों से गुलाम रहा, इस का मुख्य कारण हमारा आलस्य था। जब हमने आजादी के लिए श्रम किया तो हमें आजादी मिल गई।
उपसंहार- परिश्रम का महत्त्व सतत् कर्मशीलता में है मन मस्तिष्क को एकाग्रचित करने में है। यदि हम आलसी बनते जाएं, श्रम से जी चुराएं और सरकार से अपनी सुख-सुविधा की कामना करें तो यह देश के प्रति घोर अन्याय होगा। हमें यह मानना होगा कि जीवन को सुखमय बनाने के लिए श्रम अत्यधिक आवश्यक है। यही जीवन का सुख है। श्रम से ही हर प्रकार का सृजन संभव है। एक परिश्रमी व्यक्ति स्वावलम्बी, ईमानदार, सत्यवादी और चरित्रवान होता है। परिश्रम करने से ही परिवार समाज एवं राष्ट्र की सेवा संभव है। कहा गया है
श्रम सम्मुख हिमालय नत, कर्म सम्मुख सब प्रणत,
कर्म गीता का उपदेश, सद्भावों का उन्मेष,
दूर दुख दारिद्रय क्लेश, दूर मनोमालिन्य द्वेष,
पावन श्रम सीकर बहते, श्रमेव जयते। श्रमेव जयते ।
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