कुसंगति के दुष्परिणाम
कुसंगति का अर्थ है - बुरी संगति। अच्छे व्यक्तियों की संगति से बुद्धि की जड़ता दूर होती है, वाणी तथा आचरण में सच्चाई आती है। लेकिन कुसंगति के परिणामस्वरूप मनुष्य में अनेक बुराइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं जो मनुष्य को कुमार्ग पर ले जाती हैं। एक कवि ने कहा है -
"काजल की कोठरी में कैसे हूँ सयानों जाय,
एक लीकि काजल की लागि हैं, पै लागि है।'
जो कुछ सत्संगति के विपरीत है, वह सब कुछ हमें कुसंगति सिखलाती है। यह कभी नहीं हो सकता कि संगति का प्रभाव हमारे ऊपर न पड़े। कुसंगति का हमारे ऊपर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। दुष्ट और दुराचारी व्यक्तियों के साथ रहने से सज्जन व्यक्तियों का चित्त भी दूषित हो जाता है। जो जैसे व्यक्तियों के साथ रहता है वह वैसा ही बन जाता है। बुरे लोगों के प्रभाव से अच्छे लोग भी बुरे बन जाते हैं। अगर हमें किसी व्यक्ति के चरित्र के बारे में पता लगाना है तो हम सबसे पहले उसके मित्रों से बातचीत करते हैं। उसके मित्रों के आचरण और व्यवहार से ही हमें उस व्यक्ति के भी आचरण और व्यवहार का ज्ञान हो जाता है।
कुसंगति के अनेक दुष्परिणाम होते हैं। दोष और गुण साथ रहने से ही उत्पन्न होते हैं। मनुष्य जितना दुराचारी, पापी और दुश्चरित्र होता है, यह सब कुसंगति के कारण ही होता है। संगति का हमारे ऊपर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जो संगति की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं। जो विद्यार्थी कक्षा में कभी प्रथम आते थे, कुसंगति के कारण आज उनका पास होना भी मुश्किल हो गया है। कुसंगति के कारण धनी व्यक्ति भी निर्धन हो जाता है। कुसंगति का हमारे ऊपर इतना अधिक प्रभाव पड़ता है कि चाहे कोई कितना ही बुद्धिमान क्यों न हो इसके प्रभाव से नहीं बच सकता। रहीम जी कुसंगति के बारे में कहते हैं -
"बहि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोच ।
महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्यो परोस ।।"
सकता, बल्कि अच्छा आदमी बुरे आदमी के साथ रहकर बुरा बन जाता है। रहीम जी कहते हैं -
"कह रहीम कैसे निभे, बेर केर को संग |
वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग ।। "
अगर हम अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं तो हमें बुरे व्यक्तियों का साथ छोड़कर अच्छे व्यक्तियों की संगति करनी चाहिए । जब कोई गुणवान लोगों के सम्पर्क में आता है तो उसके अंदर स्वतः अच्छे गुणों का विकास होने लगता है। सत्संगति से मनुष्य के बुरे गुणों का नाश होता है और अच्छे गुण उत्पन्न होते हैं। सत्संगति से मनुष्य की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है। सत्संगति दो प्रकार की होती है। एक तो वह जो कोई व्यक्ति श्रेष्ठ, सज्जन और गुणवान व्यक्तियों के साथ रहकर उनसे शिक्षा ग्रहण करता है। दूसरे प्रकार की वह जो मनुष्य श्रेष्ठ पुस्तकों के अध्ययन द्वारा प्राप्त करता है। सत्संगति से मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि होती है। रहीम जी ने कहा है -
"जो रहीम उत्तम प्रकृति का कर सकत कुसंग ।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ।।"
सभी महापुरुषों ने कुसंगति से बचने की प्रेरणा दी है। मनुष्य बुरी संगति से बुरी बातें ही सीखता है। विद्यार्थियों को तो कुसंगति से विशेष रूप से बचना चाहिए। कुसंगति से बचकर ही मनुष्य महान् बन सकता है।
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