भूकम्प - एक भयानक त्रासदी
हमारे वेद, शास्त्र और आर्ष ग्रन्थों के अनुसार प्रकृति अनंत है। प्रकृति का स्वभाव बहुत विचित्र है। कभी तो यह मानव का कल्याण करती हुई दिखाई देती है और कभी विनाशकारी ताण्डव नृत्य करती है। इस प्रकृति का कब और कैसा रूप दिखाई देगा, यह सर्वथा अनिश्चित है। प्रभु ही इस खेल को समझ सकता हैं क्योंकि ईश्वर की आज्ञा बिना प्रकृति भी सर्वथा अशक्त है।
वैसे तो अकाल, बाढ़ आदि अनेक प्राकृतिक विपदाएँ मानव जीवन को समय-समय पर प्रभावित करती हैं। परन्तु इनमें से जो सबसे अधिक विकट और विनाशकारी त्रासदी है वह भूकम्प है। इस भूकम्प से कितने बड़े क्षेत्र में जान-माल की हानि होगी इसकी न कोई अंदाजा है और न ही कोई सीमा है। भूकम्प का अर्थ है भूमि में कम्पन होना। भूमि में कम्पन यदि रिक्टर पैमाने पर हल्का मापा जाए तो यह एक सामान्य - सी बात है। परंतु यह कम्पन यदि अधिक तीव्र गति का हो तब तो प्रत्यक्ष विनाश-लीला दृष्टिगोचर होने लगती है। सचमुच भूकम्प विनाश का ही दूसरा नाम है। जिस पर मानव का कोई बस नहीं है।
आधुनिक युग में साधारणतया यह मान लिया गया है कि मानव ने प्रकृति के सभी रहस्यों को जान लिया है और कुछ हद तक उसे काबू भी कर लिया है। परन्तु यह बात उस समय भ्रमित कर देती है जब वैज्ञानिक तो यह घोषणा करते हैं कि अमुक स्थान पर अधिक वर्षा या आँधी चलेगी परन्तु वहाँ धूप खिली रहती है। वैज्ञानिकों के सौर यन्त्र और उनका विज्ञान धरा का धरा रह जाता है। क्योंकि प्रकृति अनंत है ओर उसकी पहेली अबूझ है। भूकम्प के मुख्य कारणों में पृथ्वी के भीतर जो मिट्टी की तहें और चट्टानें हैं उनका हिलना तथा ज्वालामुखी का फटना आदि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त भू-स्खलन, बम फटने और रेलगाड़ियों की तीव्र गति से भी कुछ सीमित क्षेत्र में कम्पन होता है।
देश के इतिहास में सबसे भयानक भूकंप 11 अक्तूबर 1737 को बंगाल में आया था, जिससे लगभग तीन लाख लोग असमय ही काल-कवलित हो गए थे। न कोई चारा था और न ही कोई सहारा लाखों लोगों के आवास छिन्न-भिन्न हो गए थे। अनेक पशु और मानव देखते ही देखते मलबे में दब गए थे। बहुत भयंकर महामारी फैल गई थी क्योंकि मलबे के भीतर दुर्गन्ध उत्पन्न होने से मानव जीवन अत्यधिक प्रभावित हो गया था। इसी प्रकार एक बार महाराष्ट्र के लातूर नामक स्थान पर भी भूकम्प आया था जिसने जिले के लगभग 40 गाँवों को नष्ट भ्रष्ट कर दिया था।
भूकम्प त्रासदी का ताजा शिकार गुजरात प्रान्त हुआ। 26 जनवरी, 2001 को सारा देश गणतन्त्र दिवस को हर्षोल्लास के साथ मना रहा था। गुजरात में भी 26 जनवरी मनाई जा रही थी परन्तु वहाँ के लोगों को क्या पता था कि उनकी नीयति में क्या लिखा है। देखते ही देखते प्रकृति का प्रलयंकारी खेल आया और गुजरात के भुज भूकम्प के रूप में सामने क्षेत्र को कुछ ही पलों में कब्रिस्तान बना दिया। लोग समझ ही नहीं पा रहे थे कि क्या किया जाए। राज्य का वैभव कुछ ही क्षणों में चकनाचूर हो गया। इमारतें मलबे के ढेर में बदल गई। चारों ओर चीख पुकार और लाचारी का वातावरण था। अचानक हुई इस प्राकृतिक विपत्ति ने आँखों के आँसू और कण्ठ की आवाज भी छीन ली थी।
सम्पूर्ण भारत गुजरात के 'भूकम्प पीड़ितों के साथ था। सर्वप्रथम स्वयं सेवी संस्थाओं ने मोर्चा सम्भाला और अपने जीवन की परवाह न करते हुए सभी मदद के लिए कूद पड़े। राहत और बचाव कार्य आरम्भ हुआ। बचाव कार्य में सबसे अधिक योगदान सेना का रहा। सेना के तीनों अंगों ने राहत और बचाव के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। परन्तु इतनी बड़ी भूकंप- त्रासदी में हर प्रकार की सहायता भी थोड़ी जान पड़ी। लोगों का हाहाकार मानव हृदय को उद्वेलित कर रहा था। इस हादसे में अरबों रुपयों की सम्पत्ति का नुकसान होने का अनुमानलगाया गया है।
कहते हैं कि डूबते को तिनके का भी सहारा होता है। गुजरात के भूकंप पीड़ित लोग अपनी ही मातृभूमि पर असहाय और असमर्थ हो गए। बाहर से आए हुए शरणार्थियों के समान वे अपने ही घर में पराए हो गए। परन्तु भारतवर्ष की यह विशेषता रही है कि संकट के समय सारा देश एक ही माला में बंध जाता है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक विकट समय में एकता का परिचय देते हैं। सब लोगों ने भूकम्प पीड़ितों को यथाशक्ति पूरा सहयोग दिया जिससे उन्होंने राहत की साँस ली
भूकम्प से उत्पन्न होने वाले इस विनाशलीला को समय-समय पर क्या मानव समाज मूकदर्शक बनकर इसी प्रकार सहन करेगा। यद्यपि विज्ञान की सहायता से संसार के वैज्ञानिकों ने भूकम्प की पूर्व जानकारी प्राप्त करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। उपग्रह भी इस दिशा में उनकी पूरी सहायता कर रहे हैं। अब तक इस क्षेत्र में कोई विशेष प्रगति नहीं पाई गई है कि भूकम्प त्रासदी को किन उपायों से रोका जाए। जब तक कोई निर्णायक चमत्कार नहीं हो जाता तब तक हम इस प्राकृतिक विपत्ति को इसी प्रकार सहन करते रहेंगे। आशा है कि निकट भविष्य में इस ओर कदम उठाए जाएंगे जिससे हम भूकम्प जैसी त्रासदी से मुक्त हो सकेंगें।
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