साम्प्रदायिक एकता
भारत एक विशाल देश है। इसकी भौगोलिक और प्राकृतिक स्थिति अद्भुत है। यहाँ छह ऋतुओं का अद्भुत कम है। यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, पारसी आदि सभी धर्मों के लोग एक साथ मिल-जुलकर रहते हैं। यह देश किसी एक जाति, वंश, सम्प्रदाय या धर्म का देश नहीं है। यहाँ आचार-विचार, रहन-सहन, भाषा संबंधी विभिन्नताओं के होते हुए भी सब लोग एक साथ मिल-जुलकर रहते हैं। इस अनेकता में एकता के दर्शन ही भारत की सर्वप्रमुख विशेषता है। इसी विशेषता एवं समन्वय की भावना के कारण भारतीय संस्कृति आज तक अमर है। इसी तथ्य को लक्ष्य करके कवि इकबाल ने कहा था-
'यूनान, मिश्र, रोमा सब मिट गए जहां से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।'
कोई भी राष्ट्र तब तक विकास नहीं कर सकता, जब तक वहाँ के लोगों में राष्ट्रीय एकता की भावना नहीं होगी। यह एकता की भावना ही देश के नागरिकों को एक सूत्र में बाँधती है। अपने देश से प्रेम करने वाला व्यक्ति इसके लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देता है। राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था-
"जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है। वह नर नहीं पशु निरा है और मृतक समान है।'
एक समय था जब भारत एक सूत्र में बँधा हुआ था। लेकिन आज हमारी एकता खंड खंड हो गई है। स्वतन्त्रता प्राप्त किए हुए हमें इतने वर्ष बीत गए हैं, लेकिन आज भी हम विदेशियों के इशारों पर नाच रहे हैं। वे अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए हमारा अनुचित लाभ उठा रहे हैं। कहीं धर्म के नाम पर तो कहीं प्रांत के नाम पर, ये हमें अलग करना चाहते हैं। आज भी ऐसे अनेक कारण हैं जो हमारी राष्ट्रीय एकता में बाधक हैं। आज हम हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई पहले हैं और हिन्दुस्तानी बाद में। यही कारण है कि हमारे देश में समय- समय पर साम्प्रदायिक दंगे होते रहते हैं। प्रांतीयता का जहर धीरे-धीरे जोर पकड़ता जा रहा है। बंगाली बंगाल की उन्नति चाहता है तो पंजाबी पंजाब की कोई भी सम्पूर्ण राष्ट्र की उन्नति के विषय में नहीं सोच रहा है।
हमारे देश में अनेक भाषाएँ हैं। हर व्यक्ति अपने प्रांत की भाषा को प्रमुखता देता है। दक्षिण भारत के कुछ स्थानों में राष्ट्रीय गीत इसलिए नहीं गाया जाता क्योंकि यह हिन्दी में है। विभिन्न भाषाओं के साथ-साथ विभिन्न धर्म भी हैं। हमारा देश एक धर्म-निरपेक्ष देश है। सरकार किसी भी धर्म को आश्रय नहीं देती। वह हर धर्म को समान आदर प्रदान करती है, लेकिन सभी धर्मों के लोग अपने-अपने धर्म की महिमा के गान में देश , की महिमा को भूल गए हैं। इसी धार्मिक साम्प्रदायिकता के कारण जब-तब धार्मिक दंगे होते रहते हैं। राजनीतिक चल भी इस कार्य में पीछे नहीं हैं। वे भी धर्म और जाति के नाम पर उम्मीदवार खड़े करते हैं।
आजादी से पहले हमारे अंदर कितना देश-प्रेम था। उस समय हम सम्पूर्ण देश के बारे में सोचते थे। किन्तु आज हम पहले अपने धर्म और जाति के बारे में सोचते हैं बाद में देश के बारे में। हमें अपनी इस संकीर्णता से ऊपर उठना होगा। कवि नीरज ने कहा है-
"जाति से बड़ा धर्म है,धर्म- ध्यान से बड़ा कर्म है। कर्म-कांड से बड़ा मर्म है । । '
राष्ट्रीय एकता के लिए समय-समय पर अनेक उपाय किए गए हैं, परन्तु अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकि है। हमारे अनेक नेताओं ने राष्ट्रीय एकता के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। इसके लिए हमें सबसे पहले स्कूलों और कॉलेजों में राष्ट्रीय एकता की भावना का प्रचार करना चाहिए। पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए। जिससे बच्चों में देश-प्रेम की भावना उत्पन्न हो। दूसरे राजनीतिक दलों को भी धर्म के नाम पर अपने उम्मीदवार नहीं खड़े करने चाहिए। देश की आर्थिक विषमता को दूर करने के प्रयास करने चाहिए।
आज प्रत्येक भारतवासी का यह पहला कर्त्तव्य होना चाहिए कि वह अपने संकीर्ण विचारों को छोड़कर संपूर्ण राष्ट्र की उन्नति के लिए कार्य करे।
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