बिन साहस के जीवन फीका निबंध हिंदी में

बिन साहस के जीवन फीका

कायरता और साहस मानव मन के दो विरोधी भाव हैं, जिनका सम्बन्ध मानव मन की पलायनवादी तथा संघर्षवादी प्रवृतियों से है। कायर मनुष्य विपत्ति आने पर स्वयं को उस विपत्ति से दूर रखने का प्रयास करता है। किन्तु साहसी व्यक्ति उस विपत्ति का दृढ़तापवूक सामना करता है। साहसी व्यक्ति में कष्ट तथा हानि को सहन करने के साथ-साथ कार्य करने की शक्ति भी सदैव रहती है। उत्साहपूर्वक आनंद की उमंग को ही साहस कहा जाता है।

जो मनुष्य साहसी है वही संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। स्वतन्त्रता से पहले हमारे देश में चारों ओर एक ही स्वर सुनने को मिलता था कि हमें अपने देश को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराना है यह हमारे साहस का परिणाम था कि अंग्रेज भारत छोड़ने को विवश हो गए । आज हमारा देश छुआछूत, वर्ग-भेद, नारी शोषण, भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता आदि परिस्थितियों से घिरा हुआ है। इनके अतिरिक्त कभी भूकम्प तो कभी बाढ़ तो कभी अकाल जैसी प्राकृतिक विपत्तियाँ भी हमारे ऊपर आती रहती हैं। सामान्य व्यक्ति ऐसी स्थिति में अपना साहस और धैर्य खो बैठते हैं। ऐसी परिस्थितियों में बिल्कुल भी विचलित न हों और अपना साहस और धैर्य सदा बनाए रखें। साहस तथा धैर्यपूर्वक विपत्तियों को सहन करके ही हम उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। रहीम जी ने भी इस विषय में कहा है:

'रहिमन विपदा हूँ भली जो थोड़े दिन होय ।

 हित अनहित या जगत में जानि परत सब कोय।।'

विपत्ति के समय यदि हमने अपने साहस और धैर्य को त्याग दिया तो हम कुछ भी नहीं कर सकते। इस दुख के बाद सुख और सुख के बाद दुख आता ही रहता है यही प्रकृति का नियम है। मनुष्य सुख में संसार में हो या दुख में प्रत्येक परिस्थितियों का समान भाव से सामना करना चाहिए। उसे विपत्ति के समय निराश नहीं होना चाहिए बल्कि अपना साहस बनाए रखना चाहिए। हिम्मत तथा धैर्य खोने से कोई काम बनता नहीं, अपितु ऐसा करने से बना हुआ काम भी बिगड़ जाता है।

अतः हमें अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए तथा समस्त विपत्ति का हल निकालने के लिए अपने साहस को नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि साहस मनुष्य की कठिन परिस्थितियों का साथी होता है। साहसी व्यक्ति कभी अन्याय नहीं सहन करता तथा दूसरे व्यक्तियों को भी अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा देता है। वह जहाँ कहीं भी अन्याय होते देखता है, वहीं उसके विरुद्ध आवाज उठाता है। यदि तुम्हारे पास धन है तो निर्धनों की सहायता करो, विद्या है तो अशिक्षितों को शिक्षित करो, शक्ति है तो अशक्तों को आश्रय दो, तभी तुम मनुष्य कहलाने के अधिकारी हो। हमें अपने समाज में फैले भ्रष्टाचार, अन्याय, साम्प्रदायिक भेद-भाव तथा शोषण के विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए तथा इसे समाप्त करने के प्रयत्न करने चाहिए। हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जहाँ कोई भेदभाव न हो। यह सपना साकार करने के लिए हम सबको एक साथ मिल-जुल कर साहसपूर्वक कार्य करना होगा, तभी हम अपने इस सपने को सच्चाई में बदल सकते हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ