स्वास्थ्य और खेलकूद
अर्थात् शरीर सब कर्मों का मुख्य साधन है। अस्वस्थ व्यक्ति का किसी भी कार्य में मन नहीं लगता । बढ़िया से बढ़िया भोजन भी उसे विष के समान लगता है। यद्यपि स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक और सात्विक भोजन की आवश्यकता होती है। लेकिन स्वास्थ्य रक्षा के लिए व्यायाम की सर्वाधिक आवश्यकता है। व्यायाम से बढ़कर और कोई अच्छी औषधि नहीं है।
शरीर स्वस्थ रहने से मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है। इसका कारण यह है कि स्वस्थ शरीर में रक्त का संचार ठीक ढंग से होता है। इसलिए बुद्धि का विकास होता है। इसके अतिरिक्त व्यायाम का भी चरित्र पर काफी प्रभा पड़ता है। व्यायाम और खेलकूद में रुचि रखने वाला व्यक्ति धैर्यवान, सहनशील और क्षमावान हो जाता है।
कुछ विद्यार्थी किताबी कीड़े होते हैं। हर समय पढ़ते रहने से उनका मस्तिष्क कमजोर हो जाता इसके साथ-साथ उनका शरीर भी कमजोर हो जाता है। खेल शरीर को स्वस्थ, चुस्त तथा स्फूर्ति युक्त बनाते है स्वस्थ शरीर ही समस्त कार्यों की सफलता की कुंजी है। खेलों का जीवन तथा शिक्षा दोनों में ही महत्त्वपूर्ण स्थ है। जब विद्यार्थी पढ़ते-पढ़ते थक जाते हैं, तो खेल ही एक ऐसी प्रक्रिया है जो उनकी मानसिक थकान को समाप्त करती है। इस प्रकार हमें जीवन में सफलता तभी मिल पाती है जब हम खेलने के समय खेलें तथा पढ़ने के समय पढ़े।
शारीरिक विकास के लिए खेलों के अतिरिक्त भी अन्य साधन हैं। व्यायाम के द्वारा तथा प्रातः कालीन भ्रमण के द्वारा भी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। कुश्ती, कबड्डी, दौड़ना आदि भी स्वास्थ्यवर्द्धन के लिए उपयोगी हैं इससे शरीर पुष्ट होता है और मनोरंजन से व्यक्ति वंचित नहीं रहता। खेलों से मनोरंजन भी पर्याप्त हो जाता है। इससे खिलाड़ी में आत्मनिर्भरता की भावना आती है। वह केवल अपने लिए ही नहीं खेलता बल्कि उसकी हार और जीत पूरी टीम की हार और जीत है। अतः उसमें साथियों के लिए स्नेह और मित्रता का विकास होता है।
खेलों के अनेक लाभ हैं। इनका जीवन और जाति में विशिष्ट स्थान है, शारीरिक और मानसिक स्थिति को कायम रखने के लिए खेलों का बड़ा महत्त्व है। खेलों से केवल शरीर का ही नहीं, अपितु इससे मस्तिष्क और मन का भी पर्याप्त विकास होता है क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। बिना शारीरिक शक्ति के शिक्षा पंगु है। मान लो कि एक विद्यार्थी अध्ययन में बहुत अच्छा है पर वह शरीर से कमजोर है। उसके लिए किसी भी बाधा का सामना करना संभव नहीं है। तब ऐसे विद्यार्थी से देश और जाति क्या कामना कर सकती है । रात-दिन किताबों में अपनी दृष्टि गड़ाए रखने वाले विद्यार्थी कभी सफल नहीं हो सकते । शक्ति के अभाव में अन्य सब गुण व्यर्थ सिद्ध होते हैं। तभी तो कहा गया है:
त्याग, तप, करुणा, क्षमा से भीगकर
व्यक्ति का मन लो बली होता
अगर हिसंक पशु जब घेर लेते हैं,
उसे काम आता बलिष्ठ शरीर ही ।।
बहुत से विद्यार्थी खेलों के बल पर ऊँचे-ऊँचे पद प्राप्त कर लेते हैं। खेलों के अभाव तथा निर्बलकाय होने के कारण ही अधिकांश विद्यार्थी किसी महत्त्वपूर्ण पद से वंचित रह जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मस्तिष्क कितना भी सबल क्यों न हो चलना पैरों से ही है। अतः शिक्षण के साथ-साथ खेलों में भी उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक है।
इसमें संदेह नहीं कि खेल विद्यार्थी जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं पर यदि इनमें अधिक भाग लिया जाए तो हानि भी होती है। बहुत से विद्यार्थी खेलों में अधिक रुचि रखने के कारण पढ़ाई से मुँह मोड़ लेते हैं, लेकिन हमें ऐसा कभी नहीं करना चाहिए । स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए खेलकूद को भी महत्त्व देना चाहिए।
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